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हिंदी मेरी माँ जैसी है...

16 सितंबर को राष्ट्रीय हिन्दी दिवस मनाया गया. हिंदी को राजभाषा घोषित करने के बाद 1953 से हिंदी दिवस मनाया जा रहा है. 16 सितंबर से अगले सात दिनों तक हिंदी सप्ताह मनाया जाता है. इसके पीछे उद्देश्य है लोगों को हिंदी के अधिक से अधिक प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना. राष्‍ट्रपिता महात्‍मा गांधी ने हिन्‍दी को जनमानस की भाषा कहा था. उनका तर्क था कि हिंदी में वे सारी खूबियां हैं जो किसी भाषा को राष्ट्रभाषा बनने के लिए होनी चाहिए. वे हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाना चाहते थे लेकिन कुछ लोगों के विरोध के कारण ऐसा हो न सका.


मुझे 1998 की एक घटना याद आती है. एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में, जहां हमारा संगठन भी आमंत्रित था, फ्रांस के राष्ट्रपति ज़्याक शिराक मुख्य अतिथि थे. आमंत्रित वक्ता विभिन्न देशों के थे. अधिकांश ने अंग्रेजी में और कुछ लोगों ने अपनी-अपनी मातृभाषाओं में ही बात रखी. जब कोई वक्ता अपनी इंग्लिश या किसी अन्य भाषा में बोल रहा होता है तो राष्ट्रपति के चेहरे पर कोई भाव न होता, लेकिन फ्रेंच अनुवादक द्वारा अनुवाद किए जाने के बाद वे पूरे उत्साह से अपनी प्रतिक्रिया देते. ऐसा लग रहा था जैसे श्री शिराक को फ्रेंच के अलावा कोई भाषा नहीं आती. उस कार्यक्रम में बहुत से ऐसे लोग थे जिन्हें अपने देश की भाषा के अलावा कोई भाषा नहीं आती थी. इसलिए उस समय तो मुझे स्वाभाविक लगा.



कार्यक्रम के बाद चाय पर मेरा और श्री शिराक का आमना-सामना हुआ. मैंने मुस्कुराकर अभिवादन किया और उसके बाद तो जो हुआ वह मुझे हैरान कर देने वाला था. राष्ट्रपति ने मुझसे अंग्रेजी में हाल-चाल पूछा, हमारे संगठन के काम के लिए बधाई दी, कुछ सुझाव और भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं. मैं तो आवाक रह गई. जो राष्ट्रपति थोड़ी देर पहले मंच से ऐसा दर्शा रहे थे मानों अंग्रेजी उनके लिए कोई अबूझ भाषा है, वे फर्राटेदार अंग्रेजी बोल रहे थे. एक बड़े मंच से उन्होंने कितना बड़ा संदेश दिया- मातृभूमि और मातृभाषा का स्थान सर्वोच्च है लेकिन किसी अन्य देश या भाषा के प्रति कोई अनावश्यक दुराग्रह भी नहीं है. 22-23 साल बाद भी मुझे सारी बातें याद हैं.


उस घटना ने मेरे ऊपर बड़ा असर डाला. मैं गुरुकुल से पढ़ी हूँ. हिंदी के साथ-साथ संस्कृत की भी पढ़ाई की. दिल्ली की पली-बढ़ी होने और सामाजिक रूप से काफी सक्रिय परिवार से होने के कारण, बहुत से ऐसे लोगों के साथ सरोकार रहता था जो सिर्फ अंग्रेजी ही समझते थे. जाहिर है, प्रयोग के कारण कामभर अंग्रेजी भी आती थी. लेकिन उस घटना के बाद मैंने तय किया कि अनावश्यक रूप से अंग्रेजी का प्रयोग बिल्कुल नहीं करूंगी. जब एक देश का राष्ट्रपति अपनी भाषा के लिए ऐसा समर्पण दिखा सकता है तो हम क्यों नहीं? मैंने एक नियम बना लिया है. जो व्यक्ति हिंदी समझ सकता है, उससे केवल और केवल हिंदी में ही बात करनी है-चाहे भारत हो या परदेस. यह लेख मैं सिंगापुर में अपनी बहन के घर में बैठी लिख रही हूँ. बहन के परिवार में सब ज्यादातर इंग्लिश ही बोलते हैं, कामकाजी जरूरतों के कारण यह उनकी आदत बन चुकी है. लेकिन मेरी आदत से वे परिचित हैं. टूटी-फूटी ही सही, हिंदी बोलते हैं. उन्हें हिंदी बोलने की कोशिश करते देखना मुझे अच्छा लगता है, और मेरे चेहरे पर आई मुस्कान देख कर वे खुश होते हैं. वे कहते हैं कि हिंदी ज्यादा व्यवहारिक या प्रैक्टिकल है और किसी अन्य भाषा के मुकाबले इसे सीखना ज्यादा आसान है क्योंकि इसमें जो बोलते हैं वही लिखते हैं जबकि अंग्रेजी और कई अन्य भाषाओं में ऐसा नहीं है.

हिंदी की इन खूबियों को गांधीजी ने बहुत पहले समझ लिया था उसे देर-सबेर तकनीक जगत ने भी स्वीकारा. गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट वगैरह भी अब हिंदी के प्रयोग को बढ़ा रहे हैं. भाषा के रूप में हिंदी को बढ़ाने में तकनीक की भूमिका बहुत बड़ी और सराहनीय है. मैं उसी तकनीक की सहायता से तो हिंदी में टाइप कर पा रही हूँ. लेकिन तकनीक के क्षेत्र में हमारी प्यारी हिंदी को उसका उचित स्थान दिलाने के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. वैसे मेरे जैसे हिंदीप्रेमियों के लिए संतोषप्रद और उत्साहित करने वाली बात है कि 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत के 43.6 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते या बोल-समझ लेते हैं. अंग्रेजी और मंदारिन के बाद अपनी हिंदी विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है.


तो इस हिंदी दिवस पर क्यों न हम ये निश्चय करें कि जितना ज्यादा से ज्यादा हो सके हिंदी में ही काम करेंगे. अंत में, हिंदी पर लिखी एक सुंदर पंक्ति जो किसी ने मुझे व्हॉट्सऐप पर भेजी है-


‘कोई पूछे जो कैसी है?

हिंदी मेरी माँ जैसी है.’


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